फरवरी 2019 में, राष्ट्रीय सर्वेक्षण संगठन ने 2018 के भारत में बेरोज़गारी दर के लिए अपने आंकड़े जारी किए। 6.1% पर यह आंकड़ा भारत के आर्थिक इतिहास के 45 वर्षों में सबसे अधिक बताया गया। नीति आयोग ने जल्द ही खुद को आलोचकों से घिरा हुआ पाया जब उसने एक चुनावी मौसम में इन संख्याओं की खिलाफ वकालत करी ।
बेरोज़गारी दर का क्या अर्थ है? इसका सीधा सा मतलब है कि कानून के प्रावधानों के अनुसार कामकाजी आयु वर्ग (15 से 59 साल) में से कितने लोग रोज़गार की तलाश कर रहे थे, पर उन्हें काम नहीं मिल सका । इस आंकड़े में भी परतें हैं – लिंग और क्षेत्रों के अनुसार इसमें काफी विविधता है। सबसे ज्यादा बेरोज़गारी दर 10.8% शहरी महिलाओं में देखी गई, इसके बाद शहरी भारत में पुरुषों में 7.1%, ग्रामीण पुरुषों में 5.8% और ग्रामीण महिलाओं में 3.8% है।
ये बेरोज़गारी की संख्या स्वयं भ्रामक है क्योंकि भारत में न तो कड़ाई से न्यूनतम मजदूरी दर लागू होती है और न ही काम करने के घंटे पर अंकुश लागू हो पाता है । पूर्णतः बेरोज़गार लोगों के अलावा भारत का एक और बड़ा हिस्सा वह भी है जो बहुत कम मजदूरी, छोटे अनुबंध पर काम करता है या उचित अवसर के अभाव में छोटे समय के लिए पारिवारिक व्यावसायिक इकाइयों से जुड़ा होता है। रोज़गार से बेरोजगार होने के बीच अनेक पड़ाव हैं जो भारत के व्यापक सामाजिक-आर्थिक परिवेश के कारण मौजूद हैं| यह भी एक आंशिक बेरोज़गारी है जो औपचारिक आंकड़ों में नहीं दिखती ।
यह भी बताना आवश्यक है की बेरोज़गारी एक वैश्विक समस्या है और यह केवल भारत में ही नहीं बल्कि कई विकसित देशों में भी है | इस वर्ष फ्रांस में बेरोज़गारी दर 8.8 प्रतिशत है जबकि इटली में 10.7 प्रतिशत है और स्पेन में १८.६% वहीँ अमरीका में ४.४% | हालाँकि चीन में ये दर ३.६% और जापान में २.६% थी | इसका एक मुख्य कारण यह भी है की जापान और चीन में युवाओं का प्रतिशत भारत की तुलना में कम है |
बेरोज़गारी के इस आंकड़े के बहुत से कारण हैं|
इसमें कोई संदेह नहीं है कि बेरोज़गारी की समस्या की जड़ हमारी शिक्षा प्रणाली है चाहे वो औपचारिक हो या अनौपचारिक । एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत हर साल सबसे अधिक संख्या में इंजीनियरों बनाने के लिए जाना जाता है। लेकिन 82 प्रतिशत भारतीय इंजीनियरों के पास वह मूलभूत कौशल नहीं हैं जिसकी आज के औद्योगिक युग में आवश्यकता है | एक रिपोर्ट के अनुसार देश में केवल 3.84% इंजीनियरों के पास स्टार्ट-अप में सॉफ्टवेयर से संबंधित नौकरियों के लिए आवश्यक तकनीकी, संज्ञानात्मक और भाषाई कौशल हैं।
शिक्षा प्रणाली पर उंगली उठाना सहज है | लेकिन इसमें हमारी अर्थव्यवस्था की भी भूमिका है | हमारे आर्थिक विकास मॉडल कुछ महानगरों पर केंद्रित है। इन 8-10 शहरों से बाहर उद्यम और नौकरियों के संदर्भ में बहुत कम अवसर बनाए जा रहे हैं जिसकी वजह से छोटे शहरों से निकलने वाले युवाओं को भी अपनी पहली नौकरी महंगे महानगरों में ढूंढनी पड़ती है |
बढ़ती बेरोज़गारी का तीसरा कारण हमारे गाँवों की स्थिति से है | कृषि का क्षेत्र भी मंदी के लम्बे दौर से गुज़र रहा है | 1993 से 2016 तक किसानों की आय में 2 प्रतिशत से भी कम प्रतिवर्ष बढ़ोत्तरी हुई है | ग़ौरतलब है की कृषि आधे भारतीयों का रोज़गार है| इसमें चल रही निरंतर मंदी से शायद ही कोई युवा इसे कैरियर के रूप में चुनना चाहेगा | यह सभी निराश युवा किसान बेरोज़गारी के आंकड़ों में दिखेंगे |
बेरोज़गारी का चौथा कारण तकनीकी बदलाव है |
यदि हम पिछले साठ वर्षों का तुलनात्मक अध्ययन कर रहे हैं, तो हमें कुछ और बातों पर भी ध्यान देना चाहिए। पिछले 45 वर्षों से प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में काफी विकास हुआ है जिसके परिणामस्वरूप कई नौकरियों का स्वचालन हुआ है। आज अधिकतर कंपनियां अपने कॉल सेंटर पर इंसान नहीं कंप्यूटर का प्रयोग करती है| टैक्सी बुक करने से लेकर खाना और सामान मंगाने का कार्य एक एप्प से हो सकता है |
औद्योगिक क्षेत्र में हर एक रोबोट, छः इंसानों का काम अकेले कर सकता है | ऐसा माना जा रहा है की 2030 तक विश्व भर में 80 करोड़ लोगों की नौकरियाँ रोबोट द्वारा ले ली जाएंगी | बड़ी अर्थव्यवस्थाएं जैसे की जर्मनी और अमेरिका की एक तिहाई कर्मचारियों की नौकरी रोबोट के हाथों में चली जाएंगी | यही प्रवृत्ति भारत और अन्य विकासशील देशों में भी दिखेगा |
अब सवाल उठता है कि क्या हम बढ़ती तकनीक के साथ कदम से कदम मिलकर चल रहे हैं? क्या हम आगामी तकनीकों और प्रक्रियाओं को संभालने के लिए वास्तव में पर्याप्त कुशल हैं।
उदाहरण के तौर पर भारत में विद्युत् कारों का आगमन हो चुका है| अनुमान है की २०३० तक भारत में कोई भी पेट्रोल या डीजल की नयी कार नहीं बिकेंगी |आने वाले वक़्त में स्वचालित कारें भी आएँगी जिसमें स्टीयरिंग भी नहीं होगा | इसका असर यह होगा की टैक्सी और ऑटो ड्राइवर का कार्य करने वाले लोगों की नौकरियाँ समाप्त हो जाएंगी | केवल दिल्ली जैसे शहर में अकेले लगभग २.५ लाख से ज्यादा ऑटो और टैक्सी ड्राइवरों की नौकरी समाप्त हो जाएंगी | साथ ही भारत के लाखों लघु उद्यमी मोटर मैकेनिक, जिनके शिक्षा का स्तर काफी सीमित है, पेट्रोल इंजन से इलेक्ट्रिक इंजन की सीढ़ी चढ़ने में असमर्थ हो सकते हैं | विद्युत् गाड़ी को समझने लिए बेहतर शिक्षा स्तर की आवश्यकता होगी |
क्या हम ऐसे भविष्य के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं?
हमें वक़्त के साथ हो रहे बदलाव के ढाँचे में खुद को ढालना पड़ेगा अन्यथा हमारी प्रगति ढल जाएगी | हमें नए कौशल प्राप्त करने होंगे और नए आयामों को तलाशना होगा |
सबसे पहले हमें शिक्षा के क्षेत्र में काम करना होगा और हमारी शिक्षा प्रणाली को कौशल प्राप्त करने पर केंद्रित करना होगा | हमें नए प्रयोग करने पर ध्यान देना चाहिए ना की पुराने प्रयोगों के बारे में ही बातें करनी चाहिए | देश में लाखों शिक्षण संस्थान हैं लेकिन सरकार केवल कुछ अच्छे संस्थानों पर ध्यान केंद्रित किये हुए हैं जिसकी वजह से विकास का केन्द्रीकरण हो गया है | आई आई टी की विश्व में स्थान अच्छी आए यह आवश्यक है, मगर गाँवों में स्थित आई टी आई भी विश्व स्तर पर आएं यह अतिआवश्यक है| चार वर्ष लम्बे बी टेक का काल समाप्त हो चुका है मगर हम आज भी लाखों युवाओं को इसमें भेज रहे हैं |
इसके लिए सरकार को एक गतिशील और लचीली नीति बनानी होगी जो बदलती तकनीक के साथ खुद चल सके | छोटे शहरों की आर्थिक और शैक्षिक विकास पर भी ध्यान देना होगा जिससे की संतुलित क्षेत्रीय विकास हो सके |
बढ़ते ऑटोमेशन के कारण होने वाले मानव रोज़गार में गिरावट का सामना करने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक बिल गेट्स ने रोबोट टैक्स की भी बात करी है | उन्होंने कहा की जिस भी उद्योग में एक रोबोट से इंसानों की नौकरियाँ जाए वहां पर उस रोबोट के ऊपर सरकार एक विशेष कर लगा सकती है |
इस कर का उपयोग उन बेरोजगार हुए व्यक्तियों के कौशलवर्धन और जीवनयापन के लिए किया जा सकता है | टेक्नोलॉजी जगत के बेताज बादशाह के मन से आने वाले इस विचार से सभी अचंभित थे, परन्तु भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश, जिन्हें दुनिया की कम्पनियाँ एक उभरते बाजार के रूप में सम्मान देती हैं , को इस सुझाव पर विचार करने की आवश्यकता है |
कुछ विशेषज्ञों का कहना है की है कि रचनात्मकता और सहानुभूति जैसे कौशल की हमेशा आवश्यकता होगी और रोबोट उन कौशल को नहीं दोहरा सकते। नए आविष्कार अन्य कौशल के लिए दरवाज़े खोल सकते हैं जिनकी आवश्यकता और भविष्य में उच्च मांग हो सकती है परन्तु मानव संवेदना का कोई विकल्प नहीं है। अगर हमें आने वाले युग में अपनी सभ्यता का अस्तित्व बचाना है तो हमें रचनात्मकता पर ध्यान देना होगा | हमें इस की शुरुआत स्कूल और घर से करनी होगी और एक बच्चे की रचनात्मक प्रतिभाओं का विकास करना होगा |
As published on November 1, 2019 in Dainik Jagran (National Edition).
Comments